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चौथे भाव में शनि की स्थिति और शुभफल प्राप्ति के उपाय

चौथे भाव से हमारे मन, मानसिक सुख-दुःख, हमारा घर, जमीन-जायदाद, विभिन्न प्रकार के वाहन, हमारी प्रारंभिक शिक्षा और माँ का विचार किया जाता है।  
                   यदि किसी की कुंडली में चौथा भाव शुभ प्रभाव से युक्त हो या चौथे भाव में शुभ ग्रह स्थित हो, तो कुंडली के स्वामी को उपरोक्त विषयों में शुभ फल प्राप्त होते हैं या सुख मिलता है। और यदि चौथा भाव अशुभ प्रभाव से युक्त हो या चौथे भाव में शत्रु ग्रह स्थित हो, तो कुंडली धारक को चौथे भाव के विषयों में मानसिक कष्ट या विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, पूर्णतः निर्णय के लिए नवांश कुंडली, चतुर्थांश कुंडली और कारक ग्रहों का भी विचार करना आवश्यक है।  
               शनि देव न्याय, नीति और कर्म के स्वामी ग्रह हैं, या यूं कहें कि हमारे कर्मों का फल देने वाले ग्रह हैं। हम जैसा कर्म करते हैं, शनि देव वैसा ही फल प्रदान करते हैं। अधिकतर लोगों में एक अनावश्यक डर होता है कि शनि कष्ट देने वाला ग्रह है। शनि की दशा-अंतरदशा में दुःख, कष्ट, और पीड़ा झेलनी पड़ती है। परंतु यह सत्य नहीं है।  
               सच्चाई यह है कि शनि देव कर्म और न्याय-नीति के स्वामी हैं। अगर हम मेहनती हैं और न्याय-नीति को ध्यान में रखकर कर्म करते हैं, किसी को धोखा नहीं देते, तो शनि हमें कभी अशुभ फल नहीं देते। शनि देव का किसी से कोई दुश्मनी नहीं है कि वे बिना कारण किसी को कष्ट देंगे। अगर हम ईमानदारी और न्याय-नीति से कर्म करते हैं, तो शनि देव हमें आशीर्वाद प्रदान करेंगे। और यदि हम बिना मेहनत के लाभ की इच्छा करते हैं, ईमानदारी और न्याय-नीति का पालन नहीं करते, तभी हमें शनि की दृष्टि का सामना करना पड़ता है, और दुःख, कष्ट, पीड़ा मिलती है। सब कुछ हमारे कर्मों पर निर्भर करता है।
                    जब कुंडली में शनि चौथे भाव में स्थित होते हैं, तब कुंडली धारक को अपने कार्यक्षेत्र में न्याय-नीति का पालन करना चाहिए, ताकि चौथे भाव के विषयों में शुभ फल प्राप्त हों। शनि कर्म के कारक हैं, इसलिए चौथे भाव में शनि की स्थिति के कारण चौथे भाव के विषयों में कर्म का महत्व बढ़ जाता है। सफलता कर्म से प्राप्त होती है, और उस कर्म में अवश्य ही न्याय-नीति और ईमानदारी होनी चाहिए। यदि कार्यक्षेत्र में न्याय-नीति और ईमानदारी का पालन नहीं किया जाता, तो समस्याएं शुरू हो जाती हैं। मानसिक अशांति, दुःख-कष्ट, पीड़ा का सामना करना पड़ता है।  
          अगर कार्यक्षेत्र में न्याय-नीति और ईमानदारी न हो, तो चौथे भाव के प्रत्येक विषय से कष्ट मिलता है। जमीन-जायदाद से समस्या, वाहन या अन्य मशीनरी से समस्या, माँ के साथ मतभेद या माँ के स्वास्थ्य में समस्या आदि विभिन्न कष्ट उठाने पड़ते हैं।  
और अगर कार्यक्षेत्र में न्याय-नीति और ईमानदारी के साथ कर्म किया जाए, जिससे हमारे कर्मों से किसी को कोई हानि न हो, किसी को दुःख न पहुंचे, और हमारे कर्मों से समाज का भला हो, तो शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चौथे भाव के हर विषय से सुख प्राप्त होता है—घर का सुख, वाहन का सुख, माँ का सुख आदि।  
        अतः चौथे भाव में शनि स्थित जातक-जातिकाओं को चाहिए कि अपने मानसिक सुख-शांति, घर-गाड़ी का सुख, माँ का सुख और चौथे भाव के प्रत्येक विषय के सुख प्राप्ति के लिए अपने कर्मों में ईमानदारी और न्याय-नीति को बनाए रखें।

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