मीन लग्न या राशि ज्योतिषचक्र की अंतिम राशि है। देवगुरु बृहस्पति मीन राशि के स्वामी ग्रह हैं। मीन राशि से कालपुरुष के जीवन में खर्चों या व्ययों का विचार किया जाता है।
मीन लग्न या राशि के भाग्य स्थान की राशि है वृश्चिक, जो कालपुरुष की कुंडली के आठवें भाव की राशि है। इस राशि से नकारात्मक रूप से कालपुरुष के जीवन में दुख, कष्ट, पीड़ा, मृत्यु या मृत्यु के समान कष्टों का विचार किया जाता है। और सकारात्मक रूप से गुप्त विद्या, गुप्त धन या गुप्त रहस्यों का विचार किया जाता है।
कालपुरुष के जीवन के इस तरह के द्वंद्व से भरी राशि का नवम यानी धर्म या भाग्य स्थान पर होना, मीन लग्न या राशि के बहुत से जातकों में धर्म के पालन या भाग्य के निर्माण को लेकर एक द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न करता है। अर्थात कौन सा धर्म है और कौन सा अधर्म है, इसे लेकर एक दुविधा का भाव रहता है। भाग्य के निर्माण के लिए क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, इसे लेकर भी कई बार उनके भीतर द्वंद्व की स्थिति रहती है। इसी तरह नवम भाव से उच्च शिक्षा का विचार भी किया जाता है, इसलिए उच्च शिक्षा ग्रहण करते समय भी कौन सा विषय लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए, इसे लेकर भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
इन सब बातों के पीछे मुख्य कारण है कि उनके नवम भाव में कालपुरुष के आठवें भाव की राशि वृश्चिक स्थित होती है। वृश्चिक राशि जिस भी भाव में स्थित होती है, उस भाव में कुंडली धारक के लिए भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती है। मीन लग्न या राशि के जातकों के नवम भाव में वृश्चिक राशि के होने से, वे नवम भाव के विषयों में भ्रमित हो जाते हैं।
यदि नवम भाव या वृश्चिक राशि पाप प्रभाव से युक्त हो या अशुभ प्रभाव में हो, तो ऐसे में जातक गलत मार्ग पर जाने की संभावना रखते हैं। धर्म और अधर्म का अंतर भूलकर वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, जिसका परिणाम उनके भाग्य को क्षति पहुंचा सकता है। ऐसी स्थिति में, यदि नवम भाव ज्यादा पीड़ित हो, तो जातक के जीवन में भारी हानि हो सकती है, और कई मामलों में तो जीवन के प्रति मोह भंग भी हो जाता है। लेकिन किसी भी स्थिति में, मीन लग्न या राशि के जातक अपने भाग्य को सुधार कर जीवन के सभी सुख-सुविधाओं का आनंद ले सकते हैं।
इसके लिए आवश्यक है कि पहले वे अपने नवम भाव या भाग्य स्थान की राशि को समझें, यानी वृश्चिक राशि के गुणों को जानें। वृश्चिक राशि के गुणों को समझने पर कहा जा सकता है कि वृश्चिक राशि का सकारात्मक परिणाम पाने का उपाय यह है कि वृश्चिक राशि से जुड़े कार्यों का सही ढंग से विचार और विश्लेषण किया जाए। अर्थात, भाग्य निर्माण की चाबी कर्म में निहित है, और इसलिए किसी भी कर्म को करने से पहले उसका सही ढंग से विश्लेषण करना चाहिए कि उस कार्य से भविष्य में कितना लाभ होगा, क्या वह कार्य भविष्य के लिए सही है या नहीं।
यदि सही ढंग से विचार करके कर्म किया जाता है, तो कालपुरुष के आठवें भाव के सकारात्मक परिणाम, जैसे गुप्त विद्या, गुप्त धन या गुप्त रहस्यों का लाभ हो सकता है। और यदि कर्म करने से पहले सही विचार नहीं किया गया, तो कालपुरुष के जीवन में दुख, कष्ट, पीड़ा, मृत्यु या मृत्यु के समान कष्ट जैसी नकारात्मक चीजें भी आ सकती हैं।
किसी भी स्थिति में, पहले अपने और अपने परिवार के हित को प्राथमिकता देनी चाहिए, फिर समाज के बारे में सोचना चाहिए। खुद का ख्याल रखना कभी भी स्वार्थ नहीं होता, बल्कि जरूरत होती है। मीन लग्न या राशि के जातक अपने और अपने परिवार के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करें। आपके भाग्य निर्माण में सही दिशा निर्देशक हैं आपके लग्न के स्वामी देवगुरु बृहस्पति। अगर आप अपने लग्न के स्वामी गुरु के गुणों का पालन करेंगे, तो आपको अपने भाग्य के निर्माण के लिए ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
गुरु के गुणों के अनुसार चलने का मतलब है जीवन में सही ढंग से अनुशासन, स्वच्छता, न्याय और धर्म का पालन करना और कर्मक्षेत्र में भी गुरु के गुणों को महत्व देना। गुरु के गुणों का सही तरीके से पालन करने से आपके भाग्य का निर्माण सुगम और उज्जवल होगा।
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