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लग्न और राशि में गुरु की स्थिति और शुभ फल बढ़ाने के उपाय

लग्न या राशि किसी भी कुंडली का मूल आधार होती है, जिस पर पूरी कुंडली चक्र निर्भर करती है। लग्न का अर्थ शरीर और राशि का अर्थ मन होता है। शरीर और मन के आधार पर ही हमारा जीवन चक्र चलता है। जब शरीर और मन अच्छा होता है, तब हमारी हर क्रिया, हमारा व्यवहार, आचार-व्यवहार सब कुछ अच्छा होता है। और जब शरीर और मन अच्छा नहीं होता है, तो कुछ भी अच्छा नहीं होता।
           चूँकि यहाँ चर्चा का विषय लग्न या राशि में गुरु की स्थिति है, सबसे पहले यह कहना आवश्यक है कि गुरु या देवगुरु बृहस्पति जैसा सबसे शुभ ग्रह जब लग्न स्थान में स्थित होता है, तो वह किसी भी जातक या जातिका के जीवन को धन्य कर देता है। ऐसे जातक या जातिका के व्यवहार, आचार-व्यवहार में हर जगह गुरु के गुण दिखाई देते हैं। लग्न या राशि में गुरु के स्थित होने पर जातक नम्र, शांत-स्वभावी, मधुरभाषी, और परोपकारी होते हैं।
                यदि लग्न या राशि में स्थित गुरु पाप प्रभाव से मुक्त हो, तो ऐसे जातक या जातिका, भले ही किसी कमजोर आर्थिक स्थिति वाले परिवार में जन्म लें, गुरु के कल्याणकारी प्रभाव के कारण उनका जीवन धीरे-धीरे उच्चतम स्तर पर पहुँचता है। 
             लेकिन यदि लग्न या राशि स्थान में स्थित गुरु पाप प्रभाव से युक्त हो,या शत्रु राशि मे हो ,या नीच राशि मे हो तो ऐसे जातक या जातिका के जीवन में विभिन्न समस्याएं, दुख, और कष्ट देखे जा सकते हैं। येसे स्थिति मे गुरु के गुण जातक के स्वभाव और चरित्र पर सही रूप से प्रभाव नहीं डाल पाते और जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
                लग्न स्थान में पाप प्रभाव युक्त गुरु के होने से शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे लिवर की समस्या, गैस्ट्रिक और मस्तिष्क संबंधी समस्या, सिरदर्द आदि। पारिवारिक समस्याएं, आर्थिक समस्याएं, संतान से जुड़ी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। अर्थात, गुरु जिस-जिस विषय का कारक होता है, उन विषयों में समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
                 कालपुरुष की कुंडली के अनुसार देवगुरु बृहस्पति कालपुरुष की नवम और द्वादश भाव के स्वामी होते हैं। नवम भाव से धर्म, ज्ञान, और भाग्य, और द्वादश भाव से व्यय या खर्च का निर्णय होता है। 
           यदि कुंडली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त हों, या शत्रु राशि मे ना हो ,या नीच राशि ना हो  तो व्यक्ति धार्मिक, भाग्यशाली, और ज्ञानवान होता है, और जीवन में धर्म-कर्म पर बहुत खर्च करता है। लेकिन यदि गुरु पाप प्रभाव युक्त हों, तो जातक में उपर्युक्त गुणों का प्रभाव कम दिखाई देता है।
              अब यह प्रश्न उठता है कि यदि लग्न या राशि में गुरु पाप प्रभाव युक्त हो, या शत्रु राशि मे हो ,या नीच राशि मे, तो गुरु के शुभ प्रभाव को कैसे प्राप्त किया जाए? 
               इसका उत्तर यह है कि यदि गुरु लग्न या राशि में या कुंडली के किसी भी स्थान पर पाप प्रभाव युक्त हों, या शत्रु राशि मे हो ,या नीच राशि मे हो और इसके कारण जीवन में समस्याएँ उत्पन्न हो रही हों, तो जातक को पूरी तरह से देवगुरु बृहस्पति के कारकत्व और गुणों से जुड़ना चाहिए। तभी गुरु के पाप प्रभाव के कारण उत्पन्न समस्याओं से बाहर निकला जा सकता है।
                  गुरु के गुणों से जुड़ने का माध्यम धर्म से जुड़ना है। यह सुनिश्चित करना कि अपने किसी भी कार्यक्षेत्र में हमेशा ईश्वर द्वारा निर्देशित धर्म का पालन हो और अपने दैनिक जीवन में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने आप को, अपने घर को, और अपने कार्यस्थल को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए। गुरुवार या बृहस्पति वार को गुरु का व्रत रखना चाहिए। इन बातों का पालन करें और आप देखेंगे कि जीवन की सारी समस्याएँ दूर हो जाएँगी और आपके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।
           यदि कुंडली में गुरु पाप प्रभाव से मुक्त भी हों, तो भी उपर्युक्त बातों का पालन करने से देवगुरु बृहस्पति का शुभ प्रभाव अधिक मात्रा में प्राप्त होता है, और जीवन में सुख और संतोष आता है।
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